आज बहुत दिन बाद फ़िर...
वाकई एक अरसा बीत गया। आज काफी दिनों के बाद आप सब से मुखतिब हो रहा हूँ।....तीस मार्च को पिता की अचानक मृत्यु ने मुझे इस कद्र तोड़ दिया था कि कुछ भी लिखने पढ़ने लायक नही रह गया था। गहरा आघात... स्तब्ध और पूर्णतया निशब्द। ...... ठीक होली के दिन वे अचानक बेहोश हो कर इस तरह से गिरे कि सत्रह दिन तक लगातार जीवन और मौत से संघर्ष करते हुए अंततः हार ही गए। ....सघन चिकित्सा,चिकित्सकों की कई-कई टीम, रात दिन एक करके किसी भी कीमत पर पिता को बचा लेने की पुरजोर कोशिश।.....कभी लगता यह मल्टीप्ले ओर्गोन फेल्योर का मामला है, तो कभी सेप्तिसमेया का ।बातें करते हुए मौत के आगोश में इस तरह समा गए कि शायद सोने चले गए हों।....पर वाकई वे गहरी नीद में सो ही तो गए हैं।अब वो पुल्मोनारी एम्बोलिस्म के कारण हुआ हो या अचानक हुए कर्दिअक अरेस्ट के कारण या किसी दवा या इंजेक्शन के ओवर डोज के कारण। सच तो खुदा ही जानता है, पर हमने उनको खो दिया।हम चाह कर भी उनको बचा नही पाए। मृत्यु के सच के आगे हम सब असहाय और नीरीह बने छात्पता कर रह गए।......हम में से किसी को भी सपने में भी अंदाजा नहीं था कि वे अचानक इस तरह से चले जायेंगे...