आख़िर इन विवादों की मंशा क्या है?----तीन
यह व्यक्तिगत नहीं विचारों की लड़ाई है कुछ लोग जन्म से ही अति-स्वछन्द होते हैं। सोच,समझ और विचारों में पूरी तरह से अराजक। ऐसे लोग नहीं चाहते की कभी कोई उनको टोके-टाके। उनके क्रिया-कलापों की आलोचना करे। ऐसे लोग मूलतः यथास्थितिवादी होते हैं।और देश व समाज के विकास में बाधक। वे नही चाहते कि कोई उनको रोके-टोके या उनकी ज़िंदगी और परिवेश को बदलने की कोशिश करे। पर ऐसे लोग अपनी तमाम सारी बौद्धिक संपन्नता के यह नहीं जानते कि प्रतिक्रियावादी व जनविरोधी ताकतें हमेशा ऐसे लोगों को न सिर्फ़ पुचकारती सहलाती रहती हैं, बल्कि उनकी निरीह शराफत को आसानी से अपने हितों के लिए इस्तेमाल भी कर लेतीं हैं। वर्गों में बँटे समाज में निरंतर चलनेवाले वर्ग-संघर्सों आप चाह कर भी तटस्थ नहीं रह सकते।आपको यह तय करना ही पड़ता है कि "बंधु आप आखिर किसकी ओर हैं"? वैसे भी व्यक्ति की तटस्थता या चुप्पी अंततः उसको जनता के दुश्मनों के ही पक्ष में ले जा कर खड़ा कर देती है। तमाम कलावादी या भाववादी लोग अपने जाने-अनजाने में समाज की प्रतिगामी ताकतों को ही बल प्रदान करतें हैं। यह एक सच्चाई है। ऐसे अति-स्वछन्द और तथ...