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जून 22, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कहानी

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चूहे बच्ची और पत्नी की घटना को वहम मान कर उन्होंने टाल दिया था। पर जब उनके साथ भी लगातार तीसरी बार वही सब कुछ हुआ, तो उनका माथा ठनका। इस बार भी उसी तरह। उसी जैसा। इस बार तो नींद खुलने के बाद भी सब कुछ सही सही जानने के उद्देश्य से उन्होंने अपने हाँथ-पैर को ढीला छोड़ दिया था। खुर-खुर करता हुआ वह उनके पैर के अंगूठे पर जा चढ़ा। उसके बड़े-बड़े पैने नाखूनों की चुभन उन्होंने साफ़-साफ़ महसूस की। दो उँगलियों के बीच की मुलायम जगह पर उसने अपने नथुने से सही स्थान निश्चित किया। और अपने नुकीले दांत गड़ा कर धीरे-धीरे चमड़ी कुतरने लगा। कुतुर-कुतुर...कुतुर-कुतुर। धीरे-धीरे गोश्त तक। गुदगुदी के साथ जब एक तेज़ दर्द उनकी नसों में चढ़ने लगा, तो तिलमिला कर उन्होंने अपना पैर झटक दिया। वह उछला। और यह जा, वह जा। इसके बाद अब उसकी पहचान के लिए उसे खोजना बेकार था। वह चूहा ही था। अब इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं बची थी। तो क्या? वे फिर आ गए? और अब इस रूप में? उनके माथे पर बल पड़ गए। उनकी भृकुटियाँ तन गयीं। और डर की एक सिहरन उनकी नसों में करेंट की तरह दौड़ गयी। इनकी तादात क्या होगी? वे सोचने लगे।   पिता की कृपा पर पल...