बसंत पंचमी का यह दिन----
आज बसंत पंचमी है. आसमान में उड़ती हुई पतंगों को देख कर बचपन की ढेर सारी यादें ताज़ा हो गयीं. बचपन बीत गया,जवानी आयी और अब वह भी हाथ से फिसलती जा रही है. पर आसमान में सिर ताने उड़ती हुई लहराती पतंगें मुझे आज भी रोमांचित करती हैं. आज़ादी की चाहत की तरह. बचपन में हम अपनी पतंगें और माँझा ख़ुद बनाया करते थे. क्या जोश होता था ? सब कुछ अपना. अपनी ज़मीन, अपना आकाश, अपनी हवा और अपनी बाल सुलभ पतंगबाजी की प्रतियोगिता. हार में भी जीत और जीत में भी हार. लेकिन अब समय बदल गया है . न तो अब उस तरह के खुले मैदान हैं और न ही उतनी साफ़ सुथरी खुली हवा . पतंग , माँझा , चरखी और डोर सब ब्रांडेड हो गए हैं . और पतंगबाजी हुड़दंग . और हर हाल में जीतने की लालसा . हर साल न जाने कितने बच्चे इस पतंगबाजी के चक्कर में अपनी जान गवाँ बैठते हैं . कभी छत से गिरकर और कभी करंट लगने के कारण . पतंगों को भी देखिये तो ऐसा लगता है कि आसमान में पतंगें नहीं रुपये उड़ रहे हैं . वाकई बाज़ार ने हमारे तीज त्योहारों को भी एक वस्तु बना कर रख दिया है. पहले बसंत पंचमी के दिन ...