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फ़रवरी 22, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काहे की जय हो ?

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आज कल पूरा देश जय हो- जय हो की जय-जय कार में मदमस्त होकर पागलों की तरह झूम रहा है और ऑस्कर मिलने की खुशी में लोग-बाग़ फूल कर इतना कुप्पा हो रहे हैं कि सच की तरफ़ न तो ख़ुद देखना चाहतें हैं और न दूसरों को देखने-सुनने दे रहे हैं। जश्न मनाने का शोर भाई लोगों ने इतना कनफोरवा कर रखा है कि जब तक कोई कुछ सोच-समझ पाए, तब तक स्लमडॉग मिलिनिअर फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक अपना बिजनेस कर के खूब सारा पैसा यहाँ से बटोर लें जायें। और उनका यह कम खूब असं कर रहे हैं उदार पूंजीवाद और वैश्वीकरण की समर्थक इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया। जी हाँ, यह है बाजारवाद का नया रूप जो अबकी ऑस्कर की शक्ल में हमारे यहाँ आया है। चाहे वह स्लम डॉग मिलिनिअर को हांथों- हाथ उठाने का मसला हो या इस्माईल पिंकी को पुरस्कृत करने की बात हो। इसमें कोई शक नहीं कि ए0 आर0 रहमान एक उच्चकोटि के संगीतकार हैं और गुलजार एक महान गीतकार। उनकी पहचान, प्रतिभा और कला किसी मठ, मंच व कुछ तथाकथित कला-पारखियों की स्वीकृति या प्रमाण-पत्र की मोहताज बिल्कुल नहीं है। उन्होंने दुनिया को अब तक एक से बढकर एक उत्कृष्ट फिल्मी और गैर फिल्मी रचनायें दी हैं।

जी हाँ, नुकसान पहुँचा सकता है मोबाइल फोन

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मोबाइल फोन आज हर आदमी की जरूरत बन गये हैं । बड़े-बूढे, जवान और बच्चे सभी इसका इस्तेमाल धड़ल्ले सेकर रहे हैं । एक अनुमान के अनुसार आज दुनिया भर में पचास करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल फोन के नियमितउपभोक्ता हैं। स्वाभाविक भी हैं इन्फार्मेशन तकनालोजी और दूर-संचार के इस दौर में यह आज की एक बड़ीआवश्यकता बन गयी हैं । इसके फायदे भी बहुत हैं। तुरत-फरत किसी को भी फोन करने सुनने की सुविधा। संदेशभेजने-पाने की सहूलियत। मनचाही आडियो-वीडियो रिकार्डिग। इन्टरनेट, सर्फिग और एफ0 एम0 रेडियो ! परहमें पता होना चाहिए की यह उच्च तकनीक वाला सुविधाजनक व उपयोगी मोबाइल फोन हमें काफी नुकसान भीपहुँचा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना हैं कि मोबाइल फोन का अत्याधिक और लम्बे-लम्बे समय तक उपयोग स्वास्थय के लिए काफी हानिकारक हो सकता हैं । हाल ही में हुए कई शोधों से यह बात साबित हुई है कि कम उम्र के बच्चों और युवाओं द्वारा मोबाइल फोन के अंधाधुंध इस्तेमाल से उनको भविष्य में मिरगी, ह्रदय रोग, ब्रेन ट्यूमर, नपुंसकता, कैंसर और अल्झेमर जैसी कई खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। दरअसल, मोबाइल फोन से ''नॉन-आयोनाइजिंग'' विकिरण

यह सिर्फ़ ननों की व्यथा-कथा नहीं है

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इन दिनों सिस्टर जेस्मी की आत्मकथा ने सिर्फ़ केरल को ही नहीं, कैथोलिक-चर्च की समूची दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। पुस्तक विवादस्पद एवं चर्चित हो कर हांथों-हाथ बिक रही है और इसके प्रकाशक को कुछ ही हफ्तों के अन्दर इस विस्फोटक आत्मकथा का (२५०० नयी प्रतियों के साथ) तीसरा संस्करण छापना पड़ गया है। लोगों में इस किताब को लेकर काफी उत्सुकता है। क्योंकि इस आत्मकथा में सिस्टर जेस्मी ने अपनी आपबीती के माध्यम से कैथोलिक चर्चों में चलने वाले अनेकों गोरख-धंधों, ननों के यौन-शोषण और पादरियों के बीच निरंतर चलने वाले सत्ता-संघर्ष सहित उन तमाम काले-अंधियारे पक्षों को बड़ी बेबाकी व बहादुरी से उजागर किया है, जिन पर चर्च के बाहर बात-चीत करना वर्जित ही नहीं पाप भी माना जाता है। दुनिया का हर धर्म वैसे भी किसी भी प्रकार के तर्क-वितर्क,बहस-मुबाहिसा और आरोप-प्रत्यारोप की इजाजत नहीं देता है। सिस्टर जेस्मी ने लिखा है कि केरल के चर्चों में ननों का सिर्फ़ यौन-शोषण ही नहीं किया जाता, उन्हें हर तरह से प्रताड़ित भी किया जाता है। पादरी न सिर्फ़ ननों को मन बहलाव व उपभोग की चीज़ समझ कर उनका यौन-शोषण करते हैं, बल्कि चर्च क