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मार्च 25, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

व्यंग्य

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दो गधों की सैर वार्ता वे दो गधे थे । और दोनों अब जान-पहचान से आगे बढ़ कर अच्छे दोस्त बन चुके थे । दोनों दिन भर लादी लादते । अपने-अपने मालिक की चाकरी करते । और शाम को थोड़ा आराम करने के बाद जब उनके मालिक उन्हें घास चरने के लिए खुला छोड़ देते, तो वे अपने अपने जंजालों से पिंड छुड़ा कर घास भरे मैदानों की ओर सरपट भाग निकलते । इस तरह उनकी चराई भी हो जाती । सैर भी । और कुछ देर आपस में बात-चीत कर लेने से उनका मन हल्का भी हो जाता था । आज भी जब वे रोज़ की तरह मिले, तो रोज़ की औपचारिक की हाय-हैलो के बाद पहले वाले ने दूसरे से पूछा---“कैसे हो यार?” ---“ठीक ही हूँ । ” दूसरे ने रोज़ की तरह मुंह लटका कर जवाब दिया । ---“इसका मतलब है कि तुम अभी भी दुखी चल रहे हो?” ---“हाँ यार, क्या बताऊं? सब कुछ कर के देख लिया, पर मेरी ज़िंदगी में कोई बदलाव आ ही नहीं रहा । इस बीच ससुरे कितने घूरों के दिन बहुर गए, पर मेरी ज़िंदगी तो वैसी की वैसी ही है, बल्कि दिन पर दिन और खराब होती जा रही है । ---“तो भाग क्यों नहीं जाते? बहुत मालिक मिल जायेंगे । वैसे भी, आज कल मार्किट में गधों की कमी चल रही है । मालिक