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फैज़ आज भी जिंदा हैं...और आगे भी रहेंगे....हमारे दिलों में

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आज महान और मशहूर क्रांतिकारी शायर फैज़ अहमद फैज़ की जन्म-शती है।...उनको सौ-सौ बार सलाम! ...फैज़ सिर्फ उर्दू के ही नहीं,सिर्फ पाकिस्तान के नहीं, इस पूरी दुनिया में हिंदी-उर्दू और पंजाबी समझने वाले करोड़ों- आम- मेहनत कश और मजलूमों के शायर हैं। वे सिर्फ एक शायर ही नहीं....उनकी चेतना की मुकम्मिल आवाज़ भी हैं!... एक भूमिहीन परिवार में पैदा होकर,बचपन लगभग मुफलिसी में गुज़ार कर और जीवन के अनेकों विकट संघर्सों से गुजरते हुए फैज़ ने जब अपनी चेतना व दृष्टि को एक सोच भरी इंकलाबी धार से लबरेज़ कर दिया एवं अपनी आवाज़ को बहुसंख्यक शोषितों,पीड़ितों तथा वंचितों की आवाज़ बना दी, तो एक समय में ब्रिटिश फौज में ऊंचे पद पर रहने वाले और " मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न माँग " जैसी विश्व - प्रसिद्द प्रेमभरी नज़्म लिखने वाले फैज़ अहमद फैज़ पाकिस्तानी हुकूमत को जरा भी बर्दाश्त नहीं हुए और कई बार जेल की सीखचों के पीछे डाल दिए गए। ....लेकिन फैज़ की शायरी को कभी भी कैद नहीं किया जा सका। बल्कि उनकी शायरी धीरे-धीरे दुनिया भर के मजलूमों की आवाज़ बन कर और हुकूमत की सख्त चाहदीवारों को भेद कर उभरने...