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जनवरी 5, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कहानी---कुत्ते

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हाँ वे कुत्ते ही थे , अलग-अलग नस्ल, आकार-प्रकार और रंग के कुत्ते, जिन्होनें पूरे गाँव का जीना दूभर कर रखा था। वे कहाँ से आये थे? कब आये थे? उन्हें यहाँ कौन लाया था? वे एक एक करके आये थे या कि झुण्ड में? वे यहाँ खुद आये थे या उन्हें कोई यहाँ छोड़ गया था? किसी को भी उनके बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। मालूम था तो सिर्फ इतना कि सबसे पहले कुत्तों के इस गिरोह को शिवालय के पंडित रामानुज शास्त्री और मस्जिद के मौलवी हाजी समशुल अहमद ने देखा था। वह ब्रह्म मुहूर्त की बेला थी। दोनों अपने-अपने घरों से निकल कर रोज़ की तरह इकट्ठे दिशा फिराकत को जा रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि ये कुत्ते मस्त होकर घोड़ों की तरह गाँव की गलियों में धमाचौकड़ी मचा रहे हैं। दोनों ने एक दूसरे को सवालिया निगाहों से देखा, मुस्कराए और बुदबुदाये---ये ससुरे कहाँ से आ गए?...ज़रूर रात में आये होंगे। फ़ौरन से पेश्तर इन आगंतुक कुत्तों के लिए गाँव की पंचायत बुलाई गयी। और पंचों ने काफी सोच विचार का यह फैसला किया कि चूंकि ये कुत्ते रास्ता भटक कर यहाँ आ गए हैं। इसलिए इनको यहाँ चैन से रहने दिया जाय। इनको भगाने या इनको परेशान करने क...