जी हाँ, नुकसान पहुँचा सकता है मोबाइल फोन
मोबाइल फोन आज हर आदमी की जरूरत बन गये हैं । बड़े-बूढे, जवान और बच्चे सभी इसका इस्तेमाल धड़ल्ले सेकर रहे हैं । एक अनुमान के अनुसार आज दुनिया भर में पचास करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल फोन के नियमितउपभोक्ता हैं। स्वाभाविक भी हैं इन्फार्मेशन तकनालोजी और दूर-संचार के इस दौर में यह आज की एक बड़ीआवश्यकता बन गयी हैं । इसके फायदे भी बहुत हैं। तुरत-फरत किसी को भी फोन करने सुनने की सुविधा। संदेशभेजने-पाने की सहूलियत। मनचाही आडियो-वीडियो रिकार्डिग। इन्टरनेट, सर्फिग और एफ0 एम0 रेडियो ! परहमें पता होना चाहिए की यह उच्च तकनीक वाला सुविधाजनक व उपयोगी मोबाइल फोन हमें काफी नुकसान भीपहुँचा सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना हैं कि मोबाइल फोन का अत्याधिक और लम्बे-लम्बे समय तक उपयोग स्वास्थय के लिए काफी हानिकारक हो सकता हैं । हाल ही में हुए कई शोधों से यह बात साबित हुई है कि कम उम्र के बच्चों और युवाओं द्वारा मोबाइल फोन के अंधाधुंध इस्तेमाल से उनको भविष्य में मिरगी, ह्रदय रोग, ब्रेन ट्यूमर, नपुंसकता, कैंसर और अल्झेमर जैसी कई खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। दरअसल, मोबाइल फोन से ''नॉन-आयोनाइजिंग'' विकिरण उत्सर्जित होता है, जिसे ''मोइक्रोवेब रेडियशन'' कहा जाता हैं । आज दुनिया भर के वैज्ञानिक और विकिरण विशेषज्ञ इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि इस ''नॉन-आयोनाइजिंग रेडियशन'' की अधिक और लगातार खुराक से मानव-शरीर की कोशिकाओं को काफी हद तक नुकसान पहुँचा सकती है।
अमेरिका वैज्ञानिकों डा0 हेनरी लेई और उनके सहयोगियों ने अपने कई अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकाला कि कम मात्रा का ''माइक्रोवेव रेडियशन'' भी चूहों के मस्तिष्क की कोशिकाओं के ''डी0 एन0 ए0'' अणुओं को विभाजित कर देता हैं । आज यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी है कि मस्तिष्क की कोशिकाओं के डी0 एन0 ए0 का इस तरह से विभाजन ''अल्झेमर'', ''पार्किन्सन'' और ''कैन्सर'' जैसी खतरनाक बीमारियाँ उत्पन्न कर सकता हैं ।
ब्रीस्टल रोयल इन्फर्मरी के डा0 एलेन प्रीस ने अपने लम्बे समय के अध्ययनों से यह पाया कि मोबाइल फोन से निकलने वाला विकिरण हमारे मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता को काफी हद तक प्रभावित कर देता है। स्वीडन के नेशनल इन्स्तितुते ऑफ़ वर्किंग लाइफ के वैज्ञानिक डा0 जेल हेन्सन माइल्ड ने अपने वैज्ञानिक अनुसंधानो से यह निष्कर्ष निकाला कि मोबाइल फोन के नियमित उपभोक्ताओं को कुछ समय बाद सिरदर्द की शिकायत होने लगती है। उनकी शारीरिक थकान बढ़ जाती है। और कभी-कभी उनकी त्वचा में जलन और खुजली की शिकायत भी होने लगती हैं। यही नहीं आस्ट्रेलिया के डा0 माइकल रेपचोली, जो कि एडीलेड के रोंयल हॉस्पिटल के वरिष्ठ वैज्ञानिक चिकित्सक हैं, के अनुसार अगर मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण की मात्रा चूहों को प्रतिदिन एक घंटे तक दी जाये तो उनको कैंसर उत्पन्न हो सकता है।
लेकिन दूसरी तरफ मोबाइल फोन कम्पनियाँ इन दुष्प्रभावों को एक सिरे से नकार रही हैं। अभी हाल ही में जनरल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोशियेशन और न्यू इंगलैंड जनरल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरण के ब्रेन ट्यूमर और कैंन्सर नहीं होता हैं। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि कई बार ब्रेन ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है। उपरोक्त रिपोर्ट को तैयार करते समय 1982 से 1995 के अध्ययनों को आधार बनाया गया है । और तब की अवधि में मोबाइल फोन का इस्तेमाल इतना अधिक नहीं होता था तथा मोबाइल फोन इतने भारी और साथ रखने के लिहाज से काफी असुविधाजनक होते थे, इसलिए लोग इनका प्रयोग आज की तुलना में बहुत कम ही करते थे।
कहीं ऐसा तो नहीं कि इस रिपोर्ट का आधार कोई ऐसा अध्ययन हो, जिसे मोबाइल कम्पनियों ने ही ''स्पाॅन्सर'' किया हो ? दुनिया भर के वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषयज्ञों के गले से यह रिपोर्ट नीचे नहीं उतर रही है। उनका कहना है कि इसी तरह अतीत में सिगरेट बनाने वाली कम्पनियां भी अपने कुछ वैज्ञानिकों के माध्यम से यह दावे करवाती रहीं है कि सिगरेट पीने और तम्बाकू के सेवन से कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु आज यह पूरी तरह से साबित हो गया है कि सिगरेट पीन से न सिर्फ स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, बल्कि कैंसर रोग और हृदय रोग भी हो सकता हैं। कहीं मोबाइल फोन को लेकर भी यही सब कुछ तो नहीं किया जा रहा हैं ।
प्रोफेसर रोस एन्डे जैसे जीवविज्ञानी, जिन्होंने विकिरण के दुष्प्रभावों पर काफी अध्ययन किया है और ब्रिस्टन यूनिवर्सिटी के डा0 रोज़र कागहिल जैसे वैज्ञानिकों द्वारा निकाले गये निष्कर्षो के अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली माइक्रोवेब विकिरण की मात्रा से मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रर्याप्त ऊष्मा की खुराक मिलती है, जिससे उनमें रक्त संचार बढ़ जाता है। और उनकी प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया पर फर्क पड़ता हैं। इसके अलावा यह विकिरण मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी नुकसान पहुंचता है। मस्तिष्क की एकाग्रता और चैंकन्नेपर को बाधित करता है तथा स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है। और अगर मस्तिष्क की कोशिकाओं को इस विकिरण की लगातार और अधिक मात्रा मिलती रही तो ब्रेन ट्यूमर भी हो सकता है।
इन निष्कर्षो को ध्यान में रखते हुए डा0 कागहिल कहते हैं कि अगर मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरण की खुराक पन्द्रह से बीस मिनट प्रतिदिन ही सीमित रहती है, तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर यही खुराक आधे घंटे से लेकर सात-आठ घंटे रोज मिलती है, तो कनपटी के नीचे तेज दर्द, टीसने वाला सिर दर्द, थकान, रक्तकणों व शरीर की प्रतिरोधक शक्ति में गिरावट और मस्तिष्क की कार्य क्षमता काफी हद तक प्रभावित हो सकती है। यही नहीं, मोबाइल फोन का घंटो इस्तेमाल करते रहने से मिरगी, ब्लडप्रेशर और नपुंसकता जैसी बीमारियों के होने की संभावना भी बढ़ जाती है। हाल ही में हुए कुछ नवीनतम शोधों के अनुसार अत्याधिक प्रयोग करने वाले ऐसे पुरूष मोबाइल धारको, जो मोबाइल फोन को अपनी कमर से लटकाकर रखते है, के शुक्राणुओं में चैंकाने वाली कमी पाई गयी, जो कि आठ से दस वर्षो के बाद स्थायी नपुंसकता में बदल जाती है।
हाँलाकि ''नेशनल रेडियेशन प्रोटेक्शन बोर्ड'' और इन्टरनेशनल फॉर रेडियेशन प्रोटेक्शन (नॉन आयोनाइजिंग) ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल फोन की डिजाइन, बनावट और इनको बाजार में उतारने से पहले उनकी गुणवत्ता-परीक्षण आदि के लिए कई मानदंड व दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं । परन्तु दिन-प्रतिदिन पूरे विश्व में मोबाइल फोन की बढ़ती हुई संख्या और उनकी व्यवसायिक माँग को देखते हुए क्या सभी मोबाइल कम्पनियाँ वाकई इन मानकों का पालन करती होगी ? दुनिया भर के वैज्ञानिक तो अब यह भी माँग करने लगे है कि मोबाइल फोन पर भी सिगरेट के पैकेट की तरह स्वास्थ्य संबन्धी वैज्ञानिक चेतावनी लिखी जानी चाहिए, ताकि मोबाइल फोन धारक सोच-समझ कर इनका इस्तेमाल कर सकें।
मोबाइल फोन के दुष्प्रभाव सम्बन्धी तर्क-विर्तक चालू हैं । और आगे भी इसके पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी जाती रहेंगी । फिर भी, इतना तो तय है कि हमें मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते समय कुद सावधनियां अवश्य बरतनी चाहिये । हमें मोबाइल फोन का अधिक और लगातार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ''माइक्रोशील्ड्स'' का प्रयोग करना चाहिये। फोन को सिर के कुछ सेन्टीमीटर दूर रखना चाहिए और जहां तक सम्भव हो सके ''हैन्ड फ्री यूनिटस'' का इस्तेमाल करना चाहिये। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बचना चाहिये, क्योंकि यह विकिरण और गर्भस्थ शिशु को अत्याधिक नुकसान पहुॅचाता है। ''ईयर पीस'' आदि का प्रयोग तो और भी नुकसानदायक होता है, क्योंकि यह विकिरण को सीधे मिस्तिष्क में पहुंचता है। जहां तक संभव हो सके अच्छी क्वालिटी का मोबाइल फोन ही इस्तेमाल करना चाहिए।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अगर हम समझदारी के साथ और सावधानी पूर्वक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें, तो इसके संभावित दुष्प्रभावों से बच सकते हैं ।
(तस्वीर गूगल इमेज सर्च से साभार)
वैज्ञानिकों का मानना हैं कि मोबाइल फोन का अत्याधिक और लम्बे-लम्बे समय तक उपयोग स्वास्थय के लिए काफी हानिकारक हो सकता हैं । हाल ही में हुए कई शोधों से यह बात साबित हुई है कि कम उम्र के बच्चों और युवाओं द्वारा मोबाइल फोन के अंधाधुंध इस्तेमाल से उनको भविष्य में मिरगी, ह्रदय रोग, ब्रेन ट्यूमर, नपुंसकता, कैंसर और अल्झेमर जैसी कई खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। दरअसल, मोबाइल फोन से ''नॉन-आयोनाइजिंग'' विकिरण उत्सर्जित होता है, जिसे ''मोइक्रोवेब रेडियशन'' कहा जाता हैं । आज दुनिया भर के वैज्ञानिक और विकिरण विशेषज्ञ इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि इस ''नॉन-आयोनाइजिंग रेडियशन'' की अधिक और लगातार खुराक से मानव-शरीर की कोशिकाओं को काफी हद तक नुकसान पहुँचा सकती है।
अमेरिका वैज्ञानिकों डा0 हेनरी लेई और उनके सहयोगियों ने अपने कई अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकाला कि कम मात्रा का ''माइक्रोवेव रेडियशन'' भी चूहों के मस्तिष्क की कोशिकाओं के ''डी0 एन0 ए0'' अणुओं को विभाजित कर देता हैं । आज यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी है कि मस्तिष्क की कोशिकाओं के डी0 एन0 ए0 का इस तरह से विभाजन ''अल्झेमर'', ''पार्किन्सन'' और ''कैन्सर'' जैसी खतरनाक बीमारियाँ उत्पन्न कर सकता हैं ।
ब्रीस्टल रोयल इन्फर्मरी के डा0 एलेन प्रीस ने अपने लम्बे समय के अध्ययनों से यह पाया कि मोबाइल फोन से निकलने वाला विकिरण हमारे मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता को काफी हद तक प्रभावित कर देता है। स्वीडन के नेशनल इन्स्तितुते ऑफ़ वर्किंग लाइफ के वैज्ञानिक डा0 जेल हेन्सन माइल्ड ने अपने वैज्ञानिक अनुसंधानो से यह निष्कर्ष निकाला कि मोबाइल फोन के नियमित उपभोक्ताओं को कुछ समय बाद सिरदर्द की शिकायत होने लगती है। उनकी शारीरिक थकान बढ़ जाती है। और कभी-कभी उनकी त्वचा में जलन और खुजली की शिकायत भी होने लगती हैं। यही नहीं आस्ट्रेलिया के डा0 माइकल रेपचोली, जो कि एडीलेड के रोंयल हॉस्पिटल के वरिष्ठ वैज्ञानिक चिकित्सक हैं, के अनुसार अगर मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण की मात्रा चूहों को प्रतिदिन एक घंटे तक दी जाये तो उनको कैंसर उत्पन्न हो सकता है।
लेकिन दूसरी तरफ मोबाइल फोन कम्पनियाँ इन दुष्प्रभावों को एक सिरे से नकार रही हैं। अभी हाल ही में जनरल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोशियेशन और न्यू इंगलैंड जनरल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरण के ब्रेन ट्यूमर और कैंन्सर नहीं होता हैं। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि कई बार ब्रेन ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है। उपरोक्त रिपोर्ट को तैयार करते समय 1982 से 1995 के अध्ययनों को आधार बनाया गया है । और तब की अवधि में मोबाइल फोन का इस्तेमाल इतना अधिक नहीं होता था तथा मोबाइल फोन इतने भारी और साथ रखने के लिहाज से काफी असुविधाजनक होते थे, इसलिए लोग इनका प्रयोग आज की तुलना में बहुत कम ही करते थे।
कहीं ऐसा तो नहीं कि इस रिपोर्ट का आधार कोई ऐसा अध्ययन हो, जिसे मोबाइल कम्पनियों ने ही ''स्पाॅन्सर'' किया हो ? दुनिया भर के वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषयज्ञों के गले से यह रिपोर्ट नीचे नहीं उतर रही है। उनका कहना है कि इसी तरह अतीत में सिगरेट बनाने वाली कम्पनियां भी अपने कुछ वैज्ञानिकों के माध्यम से यह दावे करवाती रहीं है कि सिगरेट पीने और तम्बाकू के सेवन से कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु आज यह पूरी तरह से साबित हो गया है कि सिगरेट पीन से न सिर्फ स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, बल्कि कैंसर रोग और हृदय रोग भी हो सकता हैं। कहीं मोबाइल फोन को लेकर भी यही सब कुछ तो नहीं किया जा रहा हैं ।
प्रोफेसर रोस एन्डे जैसे जीवविज्ञानी, जिन्होंने विकिरण के दुष्प्रभावों पर काफी अध्ययन किया है और ब्रिस्टन यूनिवर्सिटी के डा0 रोज़र कागहिल जैसे वैज्ञानिकों द्वारा निकाले गये निष्कर्षो के अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली माइक्रोवेब विकिरण की मात्रा से मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रर्याप्त ऊष्मा की खुराक मिलती है, जिससे उनमें रक्त संचार बढ़ जाता है। और उनकी प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया पर फर्क पड़ता हैं। इसके अलावा यह विकिरण मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी नुकसान पहुंचता है। मस्तिष्क की एकाग्रता और चैंकन्नेपर को बाधित करता है तथा स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है। और अगर मस्तिष्क की कोशिकाओं को इस विकिरण की लगातार और अधिक मात्रा मिलती रही तो ब्रेन ट्यूमर भी हो सकता है।
इन निष्कर्षो को ध्यान में रखते हुए डा0 कागहिल कहते हैं कि अगर मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरण की खुराक पन्द्रह से बीस मिनट प्रतिदिन ही सीमित रहती है, तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर यही खुराक आधे घंटे से लेकर सात-आठ घंटे रोज मिलती है, तो कनपटी के नीचे तेज दर्द, टीसने वाला सिर दर्द, थकान, रक्तकणों व शरीर की प्रतिरोधक शक्ति में गिरावट और मस्तिष्क की कार्य क्षमता काफी हद तक प्रभावित हो सकती है। यही नहीं, मोबाइल फोन का घंटो इस्तेमाल करते रहने से मिरगी, ब्लडप्रेशर और नपुंसकता जैसी बीमारियों के होने की संभावना भी बढ़ जाती है। हाल ही में हुए कुछ नवीनतम शोधों के अनुसार अत्याधिक प्रयोग करने वाले ऐसे पुरूष मोबाइल धारको, जो मोबाइल फोन को अपनी कमर से लटकाकर रखते है, के शुक्राणुओं में चैंकाने वाली कमी पाई गयी, जो कि आठ से दस वर्षो के बाद स्थायी नपुंसकता में बदल जाती है।
हाँलाकि ''नेशनल रेडियेशन प्रोटेक्शन बोर्ड'' और इन्टरनेशनल फॉर रेडियेशन प्रोटेक्शन (नॉन आयोनाइजिंग) ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल फोन की डिजाइन, बनावट और इनको बाजार में उतारने से पहले उनकी गुणवत्ता-परीक्षण आदि के लिए कई मानदंड व दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं । परन्तु दिन-प्रतिदिन पूरे विश्व में मोबाइल फोन की बढ़ती हुई संख्या और उनकी व्यवसायिक माँग को देखते हुए क्या सभी मोबाइल कम्पनियाँ वाकई इन मानकों का पालन करती होगी ? दुनिया भर के वैज्ञानिक तो अब यह भी माँग करने लगे है कि मोबाइल फोन पर भी सिगरेट के पैकेट की तरह स्वास्थ्य संबन्धी वैज्ञानिक चेतावनी लिखी जानी चाहिए, ताकि मोबाइल फोन धारक सोच-समझ कर इनका इस्तेमाल कर सकें।
मोबाइल फोन के दुष्प्रभाव सम्बन्धी तर्क-विर्तक चालू हैं । और आगे भी इसके पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी जाती रहेंगी । फिर भी, इतना तो तय है कि हमें मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते समय कुद सावधनियां अवश्य बरतनी चाहिये । हमें मोबाइल फोन का अधिक और लगातार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ''माइक्रोशील्ड्स'' का प्रयोग करना चाहिये। फोन को सिर के कुछ सेन्टीमीटर दूर रखना चाहिए और जहां तक सम्भव हो सके ''हैन्ड फ्री यूनिटस'' का इस्तेमाल करना चाहिये। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बचना चाहिये, क्योंकि यह विकिरण और गर्भस्थ शिशु को अत्याधिक नुकसान पहुॅचाता है। ''ईयर पीस'' आदि का प्रयोग तो और भी नुकसानदायक होता है, क्योंकि यह विकिरण को सीधे मिस्तिष्क में पहुंचता है। जहां तक संभव हो सके अच्छी क्वालिटी का मोबाइल फोन ही इस्तेमाल करना चाहिए।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अगर हम समझदारी के साथ और सावधानी पूर्वक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें, तो इसके संभावित दुष्प्रभावों से बच सकते हैं ।
(तस्वीर गूगल इमेज सर्च से साभार)
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