ऐड्स के शोर में बढ़ रही हैं अन्य जानलेवा बीमारियाँ
आज पुरी दुनिया में एच आई वी और ऐड्स को लेकर जिस तरह का भय व्याप्त है और इसकी रोकथाम व उन्मूलन के लिए जिस तरह के जोरदार अभियान चलाये जा रहे हैं , उससे कैंसर, हार्ट-डिजीज, टी बी और डायबिटीज़ जैसी खतरनाक बीमारियाँ लगातार उपेक्षित हो रही हैं। और बेलगाम होकर लोगों पर अपना जानलेवा कहर बरपा रही हैं। पूरी दुनिया के आँकडों की मानें तो हर साल ऐड्स से मरने वालों की संख्या जहाँ हजारों में होती है , वहीं दूसरी घातक बीमारियों की चपेट आकर लाखों लोग अकाल ही मौत के मुँह में समां जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार अगर ह्रदय रोग, कैंसर, मधुमेह और क्षय-रोग से बचने के लिए लोगों को जागरूक या इनके उन्मूलन के लिए कारगर उपाय नही किए गए, तो अगले दस वर्षो में इन बीमारियों से लगभग पौने चार करोड़ लोगों की मौत हो सकती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार तमाम विकसित देशों ने इन बीमारियों के खतरों के प्रति व्यापक जागरूकता फैलाकर और इनसे बचाव के उपायों के लिए शिक्षा के अनेकों कार्यक्रमों को चलाकर, लोगों के खान-पान की आदतों और असामान्य व असंयमित जीवन शैली को बदल कर एवं कुछ आसान व सस्ते तरीकों को अपनाकर इन पर काफी हद तक काबू प् लिया है। अब यहाँ इन बीमारियों से होने वाली मौतों में लगभग सत्तर प्रतिशत की कमी हो गयी है।परन्तु विकासशील देशों में जहाँ निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगों की बड़ी तादात है,गरीबी,भुखमरी व कुपोषणहै, ह्रदय रोग,कैंसर,स्ट्रोक और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। चीन, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, ब्राजील, नाईजीरिया, इंडोनेशिया और तंजानिया जैसे देश आज मुख्य रूप से इन्हीं बीमारियों की चपेट में हैं। ऐड्स से मरने वालों की संख्या यहाँ काफी कम है।
ख़ुद हमारे देश में भी १९८७ से लेकर अब तक ऐड्स से मरने वालों की संख्या जहाँ सिर्फ़ ग्यारह हज़ार थी, वहीं पिछले ही वर्ष केवल टी बी और कैंसर से छः लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी। परन्तु सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्तरों पर सिर्फ़ एच आई वी और ऐड्स की रोकथाम के लिए ही गंभीरता है और इसी के लिएअति सक्रिय कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। सरकार भी अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा इसी पर खर्च कर रही है। उदाहरण के लिए २००५-२००६ में जहाँ ऐड्स नियंत्रण पर ५०० करोड़ खर्च किए गए, वहीं टी बी उन्मूलन पर सिर्फ़ १८६ करोड़ और कैंसर नियंत्रण पर केवल ६९ करोड़ रुपये खर्च किए गए।
शायद इसीलिये ऐड्स विरोधी चलाये जा रहे तमाम अभियानों से कई चिकित्सा विज्ञानी कत्तई सहमत नहीं हैं। उनका यह मानना है की एच आई वी और ऐड्स से भी खतरनाक कैंसर और हार्ट-डिजीज होता है। और ऐड्स को लेकर पूरी दुनिया में जितना शोर मचाया जा रहा है, उतने तो इसके मरीज़ भी नहीं हैं। फिर भी आज दुनिया भर के स्वास्थ्य के एजेंडे में ऐड्स ही मुख्य मुद्दा बना हुआ है। और इसकी रोकथाम के लिए करोड़ों डॉलर की धनराशि को पानी की तरह बहाया जा रहा है। यही नहीं, अब तो अधिकांश गैर सरकारी संगठन भी जन-सेवा के अन्य कार्यक्रमों को छोड़कर ऐड्स नियंत्रण अभियानों को ही चलाने में रूचि दिखा रहे हैं। क्योंकि इसके लिए उनको आसानी से लाखों का अनुदान मिल जाता है। और इससे नाम और पैसा आराम से कमाया जा सकता है। कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है की एच आई वी व ऐड्स के हौवे की आड़ में कंडोम बनाने वाली कम्पनियाँ भारी मुनाफा कमानेके लिए ही इन अभियानों को हवा दे रही हैं। तभी तो,ऐड्स से बचाव के लिए सुरक्षित यौन संबंधों की सलाह तो खूब दी जाती है, पर संयम रखने या व्यभिचार न करने की बात बिल्कुल नहीं की जाती है। यानि कि खूब यौनाचार करो पर कंडोम के साथ।
पर कहने का मतलब यह नहीं है की ऐड्स की भयावहता के खिलाफ लोगों को जागरूक न किया जाए। एच आई वीऔर ऐड्स वाकई एक गंभीर बीमारी है। और इसकी रोकथाम के लिए जन-जागरण अभियान जरूर चलाया जाना चाहिए, पर अन्य जानलेवा बीमारियों की कीमत पर कत्तई नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है की थोड़े से प्रयासों एवं प्रयत्नों से ही हार्ट-डिजीज, डायबिटीज़, डेंगू और कैंसर से होने वाली मौतों में ६० से ८० प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। इसलिए यह ज़रूरी है की विकसित देशों की तर्ज़ पर विकासशील देशों में भी सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्तर पर इन जानलेवा बीमारियों के कारणों,खतरों और इनकी रोक-थाम के उपायों की जानकारी देने वाले व्यापक व कारगर कार्यक्रमों को चलाया जाए। ऐड्स-नियंत्रण की तरह, बल्कि उससे भी कहीं अधिक जोरदार,अभियानों को चला कर ही पूरी दुनिया को स्वस्थ एवं दीर्घजीवी बनाया जा सकता है।
(चित्र गूगल इमेज सर्च से साभार)
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