भ्रष्टाचार के विरुद्ध लडाई---१
भ्रस्टाचार का तूफानी अँधियारा और अन्ना का टिमटिमाता दिया
वरिष्ठ गांधीवादी अन्ना हजारे के 98 घंटे के सफल अनशन तथा उनके समर्थन में देश भर से उठे भारी जन दबाव के चलते जन लोक पाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में अपने पाँच आदमियों को शामिल करवा पाने में मिली उनकी सफलता से साम्राज्यवादी व हर हाल में कार्पोरेट जगत का हित साधने वाली सरकार सहित तमाम विपक्षी पार्टियों और शाषक वर्गों की जिस तरह से किरकिरी हुयी है, उससे सभी क¨ यह तो आशंका थी ही कि भ्रष्टाचार की जननी व उसका लालन पालन करने वाली वे तमाम ताकतें, इतनी आसानी से चुप चाप बैठ कर जन लोक पाल बिल बनने और उसको पास नहीं होने देंगी।
आजादी के इतने सालों से जो शक्तियां, समूह व लोग इस देश के हर संस्थान, हर महकमें और हर क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाये फल फूल रहें हैं और इस देश की सम्पदा व संसाधनों को दीमक की तरह चाट रहे हैं, वे इतनी आसानी से हार कैसे मान लेंगें ? और हुआ भी यही। पहले ही कौर में मक्खी। बड़े ही सुनियोजित तरीके से आनन् फानन में 2006 की धूल जमी कोई सीडी साफ सूफ करके बाहर निकाली जाती है और देखते ही देखते उसका जिन्न पूरी मीडिया को अपनी चपेट में ले लेता है। और इस के झंडाबरदार बनते हैं श्री अमर सिंह। अब अमर सिंह कितने गंभीर, विश्वसनीय और निष्ठावान हैं तथा देश के किसी भी व्यापक जन-आन्दोलन या सत्ता परिवर्तन के किसी भी संघर्ष में उनका योगदान कितना सार्थक रहा है, यह तो स्वयं में एक बड़े बहस का विषय है। आये दिन अपनी ऊलजलूल कारस्तानियों और बयानबाजियों के लिए जाने जाने वाले और इस समय महज भारतीय राजनीति के हाशिये और रंगीन फिल्मी महफिलों की शोभा बन कर रह गए अमर सिंह अचानक अज्ञातवास से निकल कर इतने सक्रिय क्यों हो उठते हैं और लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति में शामिल शांति भूषण व उनके बेटे प्रशांत भूषण के खिलाफ डंडा लेकर क्यों दौड़ पडते हैं? यह तो इस मुहिम को हवा देने वाले चहरे और इलेक्ट्रानिक मीडिया की उत्तेजना क¨ देखकर खुद ही स्पष्ट हो जाता है।
दरअसल वे शांति भूषण व उनके बेटे प्रशांत भूषण को भ्रष्ट साबित करके ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल लोगों की विश्वसनीयता और प्रकारांतर से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को निशाने पर लेना चाह रहे हैं। और उसको कमजोर व खंडित करना चाहते हैं। अब वे ऐसा क्यों और किन ताकतों की शह पर कर रहे हैं, यह तो जांच से देर सबेर स्पष्ट हो ही जायेगा, पर इतना तो एकदम साफ है ही कि अमर सिंह जी और उनकी ताकत बने उनके पीछे खडे लोग यह कत्तई नहीं चाहते कि इस देश से भ्रष्टाचार कभी भी खत्म हो या कभी भी इस के खिलाफ कोई कारगर आन्दोलन खडा हो या कभी भी कोई सख्त जन लोकपाल बिल बने। ये लोग जान बूझ कर और हर हाल में अन्ना हजारे द्वारा शुरू किये गए आन्दोलन को कमजोर करके खत्म करना चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल सरकारी नुमायिन्दों के खिलाफ कहीं से कोई सवाल क्यों नहीं उठाया जा रहा? जबकि सच यह है कि इस देश में होने वाले हर छोटे बड़े भ्रष्टाचार की नदी सत्ता के गलियारों से ही हो कर गुजरती है। इस देश में कैंसर की तरह यह जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसकी जड़ में कौन है? साम्राज्यवाद के पिछलग्गू हमारे शाषक वर्ग, राजनेता, अफसरशाह, बड़े कार्पोरेट घराने, माफिया और सत्ता के दलाल ! आम जनता तो आज हर हाल में भ्रष्टाचार को झेलने और उससे जूझ-जूझ कर मरने के लिए अभिशप्त है।
मेरे इस कथन का यह अर्थ कत्तई नहीं है कि शांति भूषण या प्रशांत भूषण या सिविल सोसायटी का हर सदस्य दूध का धुला, ईमानदार एवं साफ सुथरा है। या फिर जेपी की तरह अन्ना हजारे भी रेडिकल दृष्टि व विचारों से सम्पन्न एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जो आमूलचूल व्यवस्था परिवर्तन का कोई ठोस लक्ष्य लेकर किसी फैसलाकुन लड़ाई का बिगुल बजा रहे हैं। फिर भी अन्ना का यह कदम उस दीये के समान है जिसने भ्रष्टाचार के अँधियारे के खिलाफ जन लोकपाल बिल की रोशनी जलाने व पूरे देश को इसके पक्ष या विपक्ष में उद्वेलित करने का काम किया है। और हमें इसका भरपूर स्वागत एवं समर्थन करना चाहिए।
( चित्र गूगल इमजेस से साभार)
वरिष्ठ गांधीवादी अन्ना हजारे के 98 घंटे के सफल अनशन तथा उनके समर्थन में देश भर से उठे भारी जन दबाव के चलते जन लोक पाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में अपने पाँच आदमियों को शामिल करवा पाने में मिली उनकी सफलता से साम्राज्यवादी व हर हाल में कार्पोरेट जगत का हित साधने वाली सरकार सहित तमाम विपक्षी पार्टियों और शाषक वर्गों की जिस तरह से किरकिरी हुयी है, उससे सभी क¨ यह तो आशंका थी ही कि भ्रष्टाचार की जननी व उसका लालन पालन करने वाली वे तमाम ताकतें, इतनी आसानी से चुप चाप बैठ कर जन लोक पाल बिल बनने और उसको पास नहीं होने देंगी।
आजादी के इतने सालों से जो शक्तियां, समूह व लोग इस देश के हर संस्थान, हर महकमें और हर क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाये फल फूल रहें हैं और इस देश की सम्पदा व संसाधनों को दीमक की तरह चाट रहे हैं, वे इतनी आसानी से हार कैसे मान लेंगें ? और हुआ भी यही। पहले ही कौर में मक्खी। बड़े ही सुनियोजित तरीके से आनन् फानन में 2006 की धूल जमी कोई सीडी साफ सूफ करके बाहर निकाली जाती है और देखते ही देखते उसका जिन्न पूरी मीडिया को अपनी चपेट में ले लेता है। और इस के झंडाबरदार बनते हैं श्री अमर सिंह। अब अमर सिंह कितने गंभीर, विश्वसनीय और निष्ठावान हैं तथा देश के किसी भी व्यापक जन-आन्दोलन या सत्ता परिवर्तन के किसी भी संघर्ष में उनका योगदान कितना सार्थक रहा है, यह तो स्वयं में एक बड़े बहस का विषय है। आये दिन अपनी ऊलजलूल कारस्तानियों और बयानबाजियों के लिए जाने जाने वाले और इस समय महज भारतीय राजनीति के हाशिये और रंगीन फिल्मी महफिलों की शोभा बन कर रह गए अमर सिंह अचानक अज्ञातवास से निकल कर इतने सक्रिय क्यों हो उठते हैं और लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति में शामिल शांति भूषण व उनके बेटे प्रशांत भूषण के खिलाफ डंडा लेकर क्यों दौड़ पडते हैं? यह तो इस मुहिम को हवा देने वाले चहरे और इलेक्ट्रानिक मीडिया की उत्तेजना क¨ देखकर खुद ही स्पष्ट हो जाता है।
दरअसल वे शांति भूषण व उनके बेटे प्रशांत भूषण को भ्रष्ट साबित करके ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल लोगों की विश्वसनीयता और प्रकारांतर से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को निशाने पर लेना चाह रहे हैं। और उसको कमजोर व खंडित करना चाहते हैं। अब वे ऐसा क्यों और किन ताकतों की शह पर कर रहे हैं, यह तो जांच से देर सबेर स्पष्ट हो ही जायेगा, पर इतना तो एकदम साफ है ही कि अमर सिंह जी और उनकी ताकत बने उनके पीछे खडे लोग यह कत्तई नहीं चाहते कि इस देश से भ्रष्टाचार कभी भी खत्म हो या कभी भी इस के खिलाफ कोई कारगर आन्दोलन खडा हो या कभी भी कोई सख्त जन लोकपाल बिल बने। ये लोग जान बूझ कर और हर हाल में अन्ना हजारे द्वारा शुरू किये गए आन्दोलन को कमजोर करके खत्म करना चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल सरकारी नुमायिन्दों के खिलाफ कहीं से कोई सवाल क्यों नहीं उठाया जा रहा? जबकि सच यह है कि इस देश में होने वाले हर छोटे बड़े भ्रष्टाचार की नदी सत्ता के गलियारों से ही हो कर गुजरती है। इस देश में कैंसर की तरह यह जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसकी जड़ में कौन है? साम्राज्यवाद के पिछलग्गू हमारे शाषक वर्ग, राजनेता, अफसरशाह, बड़े कार्पोरेट घराने, माफिया और सत्ता के दलाल ! आम जनता तो आज हर हाल में भ्रष्टाचार को झेलने और उससे जूझ-जूझ कर मरने के लिए अभिशप्त है।
मेरे इस कथन का यह अर्थ कत्तई नहीं है कि शांति भूषण या प्रशांत भूषण या सिविल सोसायटी का हर सदस्य दूध का धुला, ईमानदार एवं साफ सुथरा है। या फिर जेपी की तरह अन्ना हजारे भी रेडिकल दृष्टि व विचारों से सम्पन्न एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जो आमूलचूल व्यवस्था परिवर्तन का कोई ठोस लक्ष्य लेकर किसी फैसलाकुन लड़ाई का बिगुल बजा रहे हैं। फिर भी अन्ना का यह कदम उस दीये के समान है जिसने भ्रष्टाचार के अँधियारे के खिलाफ जन लोकपाल बिल की रोशनी जलाने व पूरे देश को इसके पक्ष या विपक्ष में उद्वेलित करने का काम किया है। और हमें इसका भरपूर स्वागत एवं समर्थन करना चाहिए।
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