मेरठ में हुए फसाद पर एक त्वरित प्रतिक्रिया
किसी भी शहर की शांत फिजा को बिगाड़ने और जनता के बीच नफ़रत के बीज बोने का काम जाति और धर्म पर aआधारित गंदी व ओछी राजनीति करने वाले कुछ मुट्ठी भर नेता व सफेदपोश लोग करते हैं। उनको तो बस इंतजार रहता है कि कब कोई शरारती और असामाजिक तत्त्व अपनी कोई ऐसी वैसी ओछी हरकत करे और इनको अपनी अपनी रोटियां सेकने का सुनहरा मौका मिल जाये। अपने अपने समूह और tगिरोह का रहनुमा बनाने का।और यह सब कुछ चुनावों के करीब खूब होता है। पर हमें इतना जरूर समझाना चाहिए कि ऐसे नेता अंततः न तो कभी किसी समूह का भला oकरते हैं और न ही किसी जाति और धर्म का। ये हर हालमे सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। वोट बटोरने एवं सत्ता में साझेदारी करके अपनी तिजोरियां भरने का।...आम और मेहनतकश लोग तो हमेशा ही अमन पसंद होते हैं। और यह व्यापक जन समुदाय ही है हमारी ऐतिहासिक हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक एकता की संस्कृति का सर्जक ! इन्ही के कंधो पर टिकी हुयी है हमारी यह महान विरासत। क्योंकि इन्हीं लोगों ने अपने खून-पसीने से इस संस्कृति की रचना की है। इसीलिए चंद मुट्ठी भर लोगों, असामाजिक व सांप्रदायिक ताकतों की तमाम कुचेष्टा के बावजूद हमारी गंगा जमुनी साझा संस्कृति आज तक छिन्न-भिन्न नहीं हुयी है।....मेरठ में कल जो कुछ भी हुआ उसको भी चुनावों की पृष्ठभूमि में देखना-समझाना चाहिए और उसकी कठोर से कठोर शब्दों में भर्त्सना की जानी चाहिए। पुलिस और प्रशाशन को तत्परता से कार्यवाही करते हुए उन असामाजिक व अपराधी तत्वों को, जिन्होंने मौलबी के साथ बतमीजी की थी और धर्मग्रन्थ के पन्नो को फाड़ने जैसा घृणित काम किया था, सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए, ताकि कल फिर कोई दुबारा इस तरह की हरकत न करने पाये। किसी भी धर्म का धार्मिक ग्रन्थ हम सब के लिए आदरणीय व पूजनीय होता है। उसका अपमान करने की छूट किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए। काजीपुर की घटना के बाद जिन जिन इलाकों में प्रतिक्रिया स्वरूप दंगे फसाद, लूटपाट व आगजनी वगैरह हुई है वहाँ के हर नागरिक से भारी जुर्माना वसूला जाना चाहिए। और लोगों को भड़काने वाले उन तथाकथित नेताओं को भी चिन्हित करके देश, समाज और अमन का दुशमन व अपराधी मानकर कानूनन कड़ाई से निपटा जाना चाहिए। शहर के प्रबुद्ध लोगों को नियमित रूप से सांप्रदायिक एकता एवं सौहाद्र बढ़ने का सक्रिय कार्यक्रम करते रहना चाहिए।
(चित्र गूगल ईमेजेस से साभार)
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