भ्रष्टाचार के विरुद्ध लडाई--२

पहले इस बहुरूपिये भ्रष्टाचार को ठीक से समझना जरूरी है
किसी दुश्मन से लड़ने और उसे परास्त करने के लिए यह जरूरी है कि पहले उसके वजूद ,आकार-प्रकार व ताकत को अच्छी तरह से समझ कर पूरी तैयारी कर ली जाये, फिर उससे जमकर, उसक¨ अंतिम रूप से धुल चटाने के लिए भिड़ा जाये। अगर दुश्मन की कद काठी को छोटा व शक्ति को कम मानकर ललकारा जायेगा, तो उसे हराना तो दूर वह टस से मस भी नही होगा, बल्कि उल्टा वही हमारी ताकत को नष्ट भ्रष्ट कर के अंततः हमें ही पछाड़ कर देगा। भ्रष्टाचार विरोधी चलने वाली मुहिम के सन्दर्भ में यह बहुत जरूरी है कि पहले इस बहुरूपिये भ्रष्टाचार व उसकी जड़ों को ठीक से समझा जाये, फिर उस पर कारगर प्रहार किया जाये। वरना होगा वही जो इस समय अन्ना हजारे के आन्दोलन के साथ है रहा है।
वैसे, भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल बिल बनाने का विचार 1960 के दशक से ही लगातार चर्चा में बना हुआ है। लेकिन सिर्फ चर्चा में। उच्च संस्थानों में जब भी बड़े-बड़े घोटालों या भ्रष्टाचार की खबरें सुर्खियाँ बनती हैं, तब तब लोकपाल का भूत दबी-फेंकी हुयी फाईलों से बाहर निकाल लिया जाता है। लेकिन सुर्खियों की लहरों के शांत होते ही यह फिर कहीं धूल खाने के लिए दुबका दिया जाता है। 1968 से कम से कम दस बार लोकपाल बिल लाने का प्रस्ताव लाया गया, पर कई एक कारणों से उसे मुकाम तक नहीं पहुँचने दिया गया। इस तरह से अन्ना हजारे द्वारा उठाया गया मुद्दा नया नहीं है। रोजगार की गारंटी, विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं का आरक्षण, विधायकों और सांसदों को वापस बुलाने का अधिकार और खेतिहर मजदूरों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक कानून बनाने की तरह यह भी एक मौलिक और बहुत पुरानी माँग है। तब सवाल यह उठता है कि इतने पुराने और अँधेरे में लटके पड़े मसले पर अन्ना हजारे ने मात्र 98 घंटों में ही सरकार को झुकने पर मजबूर क्यों कर दिया?
इधर सरकार पर जिस तरह से लगातार बड़े-बड़े घोटालों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल होने के आरोप लग रहे हैं। और सुरसा के मुँह की तरह दिन पर दिन बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता और कानून -व्यवस्था की गिरती हुयी हालत से इस देश के व्यापक जन समुदाय, खास करके मध्य वर्ग अन्दर ही अन्दर जिस तरह से भारी असंतोष से उबल रहा है और नेपाल एवं अरब देशों में व्यवस्था परिवर्तन के लिए चलने वाले जनांदोलनों से जिस तरह लगातार ऊष्मा व ऊर्जा ले रहा है। वह यहाँ भी कब और कैसा रूप ले ले, कहा नहीं जा सकता। वैसे भी, पिछले कुछ वर्षों से इस देश की व्यवस्था को चलाने वाली ताकतें इस बात से बहुत चिंतित हैं कि शहरी मध्यवर्ग जनता का का रूझान बड़ी तेजी से परम्परागत राजनीति से अलग हटते हुये रेडिकल राजनीति की ओर हो रहा है और उसे वापस पटरी पर लाने के लिए इस समय समूचे देश के स्तर पर ऐसा कोई नेता या नेतृत्व नहीं है, जिसकी छवि स्वच्छ हो और जिसे राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठा हुआ चित्रित किया जा सके। अब सरकार की किस्मत और मीडिया के सौजन्य से अन्ना हजारे के रूप में उसे एक ऐसा देसी व ईमानदार व्यक्तित्व मिल गया है, जो अपने खांटीपन से व्यापक जनता को रेडिकल राजनीति की तरफ जाने से लम्बे समय तक रोक सकता है। इसलिए सरकार आनन् फानन में अन्ना के आगे झुक गयी। और बड़े ही सुनियोजित तरीके से उन की सारी बातें मानकर उसने बड़ी आसानी से अपने ढ़ेर सारे तनावों के लिए एक सुलभ सा साफ्टी वाल्व खोज लिया।
हमारा देश इस समय एशिया-प्रशांत क्षेत्र का चैथा सबसे भ्रष्ट देश घोषित किया गया है। और यह सच भी है कि आज हमारा पूरा तंत्र ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। इसके काले अंधे तूफान ने आम जनता का जीवन बिल्कुल दूभर कर दिया है। और अब सबको यह लगाने लगा है कि गरीबी, महँगाई, बेरोजगारी, अपराध, आतंकवाद और हर प्रकार के सामाजिक अन्याय व अत्याचार के पीछे भ्रष्टाचार ही एक मुख्य कारक के रूप में सक्रिय है। क्योंकि भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों का लेन-देन ही नहीं होता। किसी भी प्रकार का अनैतिक, अन्याय और पक्षपात पूर्ण कार्य भी भ्रष्टाचार ही कहलाता है। अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वाह न करना, अपनी ताकत, साख और संपर्कों का गलत इस्तेमाल करना, अपने नाते रिश्तेदारों, प्रियजनों, जाति-विरादरी वालों और अपने आकाओं को एन केन प्रकारेण फायदा पहुँचाना तथा किसी भी योग्य व्यक्ति की योग्यता को अनदेखा करके उसका हक मारना भी एक तरह का भ्रष्टाचार है। यही नहीं, जनता की वाजिब आवाज को जबरन कुचल देना और अपने हक के लिए या अपने ऊपर होने वाले अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के ऊपर किसी भी प्रकार की दमनात्मक कार्यवाही भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। अगर हम आज के भारत पर एक पैनी नजर डालें तो देखते हैं कि निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों ने कारपोरेट घरानों के लिए संसाधनों की बेतहाशा लूट का दरवाजा खोल दिया है। देश के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों और जमीन, खनिज, पानी सहित लोगों की जीविका के तमाम साधनों की भी लूट बेख़ौफ़ व बेरोक-टोक जारी है। राडिया टेपों और विकीलीक्स के खुलासों ने साफ कर दिया है कि साम्राज्यवादी ताकतें कारपोरेट हितों और नीतियों के अनुरूप काम करने वाले मंत्रियों की नियुक्ति तक में हस्तक्षेप करती हैं। आज न सिर्फ सेना के उच्चाधिकारी जमीन घोटालों में लिप्त पाये गये हैं, बल्कि रक्षा सौदों में भी बड़े पैमाने पर होने वाला भ्रष्टाचारों का नियमित खुलासा हो रहा है। और तो और अब न्यायपालिका के शीर्ष पर विराजमान न्यायधीशों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबरें भी प्रामाणिक तौर पर उजागर हो चुकी हैं। सरकार के कई नेता व मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद अपने अपने पदों पर जमे हुए हैं। या उनके ऊपर कार्यवाही का नाटक किया जा रहा है। केंद्र ही नहीं राज्य सरकारों में भी भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। कर्नाटक में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री भूमि घोटाले में संलिप्त हैं। और अपनी अवैध अर्थव्यवस्था चलाने वाले रेड्डी बंधु अभी भी सरकार के लिए सम्मानित और प्रभावशाली बने हुए हैं। दूसरी ओर कारपोरेट लूट और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं को निरंतर लाठी व गोली का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें देशद्रोही बताकर जेलों में बंद किया जा रहा है, जबकि भ्रष्टाचारी शान से खुलेआम घूम रहे हैं। विनायक सेन की कहानी इसी का जीता जगाता उदाहरण है।
इसीलिये भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ी जानेवाली हर लड़ाई इस भ्रष्ट जन विरोधी व्वस्था को बदलने की लड़ाई से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है।इसमें कोई संदेह नहीं है। इस लिए समाज के जागरूक, समझदार, ईमानदार व प्रबुद्ध लोगों को अब यह देखना है कि अन्ना हजारे द्वारा शुरू किया गया भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भ्रष्टाचार को संरक्षण और बढ़ावा देने वाली शाषक वर्ग एवं उनकी सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा चलाये जा रहे भ्रामक व घातक हमलों से, अंत में कहीं एक टिमटिमाता हुआ दिया बन कर न रह जाए। इसको सायास बचाने और अंतिम परणति तक पहुंचाने की बहुत आवश्यकता है। और इसके लिए जरूरी है, व्यापक जनमुदाय का पूर्ण, सजग और जागरूक निगरानी पूर्ण नियंत्रण। और यह तभी संभव होगा जब ठीक लोकनायक जयप्रकाश की तरह अन्ना हजारे के नेतृत्व में समाज के तमाम तबकों के ईमानदार लोगों- नेताओं ,अफसरों, डाक्टरों, वकीलों, अध्यापकों, पत्रकारों, छात्रों, व्यापारियों, महिलाओं,किसानों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों और स्वयंसेवी संगठनों का एक व्यापक जन मोर्चा बनाकर देशव्यापी व कारगर भ्रष्टाचार विरोधी जन-अभियान चलाया जाये। क्योंकि सवाल सिर्फ जन लोकपाल बिल की कमेटी में गैर सरकारी लोगों को शामिल होने या एक ऐसा-वैसा जन लोकपाल बिल बनवाने का ही नहीं, उसको कारगर व कठोऱ बनवाकर ठीक तरीके से लागू करवाने और हर प्रकार के भ्रष्टाचारी को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने का भी है।
(चित्र गूगल ईमजेस से साभार)

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