बाबा व्यापार करने के साथ सत्ता में हिस्सेदारी भी चाहते हैं...एक

एक लम्बे अंतराल या यूं कहें अपने लम्बे अवसादग्रस्त अज्ञातवास के बाद बाबा रामदेव अब गाहे बगाहे फिर से टीवी चैनलों पर प्रगट होने लगे हैं। वैसे भी बाबा और टीवी चैनलों का चोली दामन का साथ है। एक तो चैनलों की टी आर पी बाबा से खूब बढ़ती है और दूसरे बाबा को बैठे बिठाये घर-घर में खूब प्रचार मिल जाता है। और शायद इसीलिये बाबा के साम्राज्य में उनका अपना खुद का एक चैनल भी है। उपभोक्ता संस्कृति के इस दौर में जब हर चीज बिकाऊ हो जाती है तो बाबा का योग और आसन भी आसानी से बिकने लगता है। और सिर्फ बिकता ही नहीं, एक योग शिक्षक देखते ही देखते एक बाबा, स्वामी, सन्यासी और फिर एक नायक महानायक बन कर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ धर्मयुद्ध का बिगुल बजाने निकल पड़ता है। उनकी इस यात्रा में एक अरसे से टी वी चैनल खूब खाद पानी डालते रहे हैं।
यह और बात है जिन चैनलों ने उन्हें फर्श से उठा कर आसमान पर बिठाने की पुरजोर कोशिश की थी उन्हीं की वजह से आज वे फिर से फर्श पर आ गिरे हैं। लेकिन बाबा इसको मानने को कत्तई तैयार नहीं हैं। उनकी इस पूरी "हवाई यात्रा" ने उनके अन्दर अहंकार को इतना भर दिया है कि वे सच्चाई को मानने-स्वीकार करने के बजाय बडबोलेपन पर उतर आये है। प्रलाप करने लगे हैं। पर अपने तमाम बाहरी जोशो खरोश और नाटकीय झूठे वक्तव्यों के बावजूद हमेशा ऊर्जा से भरपूर रहने वाला यह बाबा अब अन्दर से बहुत ही कमजोर और एक हारा हुआ खिलाड़ी लगने लगा है।
वैसे जिस सुनियोजित तरीके से अन्ना हजारे के ईमानदार अभियान को धक्का पहुँचाने के लिए और एक मजबूत जन लोकपाल बिल से जनता का ध्यान हटाने के लिए उन्होंने और सरकार ने मिल कर भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ की एक जरूरी लडाई को देखते ही देखते एक आम मुम्बईया फिल्म में तब्दील कर दिया, उससे सरकार की जितनी किरकिरी हुयी है, उससे कहीं अधिक छीछालेदर बाबा की हुई है। सरकार तो चाहती ही थी कि जनलोकपाल के स्थान पर किसी तरह एक साधारण सा बिल बन जाये ताकि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे और इसके लिए उसने बड़ी आसानी से बाबा रामदेव का इस्तेमाल कर लिया। और अपनी अति महत्वाकांक्षा के कारण बाबा अपना होशो-हवास इस कदर खो बैठे कि उन्हें यह समझ में ही नहीं आया कि वे सरकार के फेंके जाल में आसानी से फंस कर इस्तेमाल हो रहे हैं। बाबा यह भूल गए कि वे न तो कोई धार्मिक गुरु हैं, न कोई संत महात्मा या नायक-बुद्धिजीवी और न ही जन आन्दोलनों की आग से तप कर निकले कोई प्रखर राजनीतिज्ञ। उनको अगर वाकई भ्रष्टाचार की चिंता होती तो वे अन्ना हजारे के साथ कंधे से कन्धा मिला कर नहीं चल रहे होते?
वे
तो मूलतः एक व्यापारी हैं। एक चतुर व्यापारी, जो आधुनिक जीवन शैली से उपजी तमाम बीमारियों के सागर में दिन प्रतिदिन डूबती जा रही मध्यवर्गीय व उच्चवर्गीय जनता को योग के नाम पर बड़ी चालाकी से अपना ऐसा स्थाई उपभोक्ता बनाना चाहते हैं, जिनको ताजिन्दगी वे अपने उत्पाद आसानी से बेच सकें। वैसे भी आज दुनिया भर चालाकी चिकित्सा वैज्ञानिक बड़ी तेजी से बढ़ रही इन तमाम जीवन शैली जनित बीमारियों के प्रकोप को कम करने और उनसे अपने आप को बचाने के लिए नियमित रूप से योग और कसरत करने, स्वस्थ एवं संतुलित आहार, प्रचुर मात्रा में फल और सब्जियों को खाने के साथ-साथ पूरकों को लेने एवं तनाव रहित रहने के लिए योग-ध्यान करने व सकारात्मक सोच रखने की सिफारिशे कर रहे हैं। इसी कारण इस सदी को "स्वास्थ्य क्रांति" की सदी के रूप देखा रहा है। और लगभग सभी दिग्गज अर्थ-विशेषज्ञों का ऐसा अनुमान है कि इस सदी में ''वेलनेस इंडस्ट्री'', जिसमें स्वास्थ्य और सौंदर्य दोनों शामिल हैं, अब तक का सबसे बड़ा उद्योग (वन ट्रिलियन डालर इडस्ट्री का) साबित होगा।
बाबा इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्हें अपने सामने एक बहुत बड़ा बाज़ार दिखाई दे रहा है, जिसका एक बहुत बड़ा हिस्सा वे अपने कब्जे में लेना चाहतें हैं। यही नहीं, वे सत्ता में हिस्सेदारी भी चाहते हैं। और हिस्सेदारी अगर किसी तरह संभव न हो सके तो कम से कम दखल अंदाजी तो अवश्य ही चाहते हैं।.....
(चित्र inewsindia.com से साभार )

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