कविता
मैं आऊँगा तुम्हारे पास
मैं बार बार आऊँगा तुम्हारे पास
तुम्हारी चौखट पर
और चुपचाप फूलों की पंखुडियां बिखेर कर
वापस चला जाऊँगा
हवाओं की तरह
मैं आऊँगा तुम्हारी उदास तनहाइयों में
सुनाऊँगा प्रेम कवितायेँ
सह्लाऊंगा तुम्हारा सिर
भर जाऊंगा तुम्हारी साँसों में
और चुपके से बुहार कर ले जाऊंगा
तुम्हारे सारे दुःख और आंसू
अपने साथ
यूं ही अचानक तुम्हारी यादों में
मैं बादलों की तरह आऊँगा
और ठंढी छाँव बनकर
तुम्हें गर्मी और उमस से बचाऊँगा
और बरस कर तुम्हारे मन-आँगन पर
दूर बहुत दूर उड़ जाऊंगा
पूरे खिले हुए चाँद की तरह
मैं बार बार आऊँगा तुम्हारे सपनों में
तुम्हारे आसमान पर
और चांदनी की सौगात रख कर
तुम्हारे सिरहाने
चुपके से क्षितिज के पार चला
जाऊँगा
यूं ही बार बार मैं आऊँगा
तुम्हारे पास
तुम्हे देखने
क्योंकि तुमसे दूर, तुम्हें देखे
बिना
मैं रह नहीं पाऊँगा
@अरविन्द कुमार
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